अर्श - दिल से

Tuesday, July 13, 2010

  बचपन के खर्चे
 हम सब के पास अपने जीवन के कुछ अनमोल पलों से जुडी कई यादें होती हैं और इनमें से कई यादें हमारे बचपन से जुडी होती हैं.! मुझे अपने बचपन के दिन बहुत अच्छे लगते हैं और मैं शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ की आपको भी अपने बचपन की यादों से प्यार होगा.!
क्यूंकि यही वो दिन थे जिनको आपने बिना किसी टेंशन के बिताये होंगे! सही मायने में मैं अपने बचपन के दिनों को जीने की ख्वाहिश रखता हूँ और जब जब मेरे ज़ेहन में ये ख्याल आता है तो बरबस ही मेरा मन जगजीत सिंह की आवाज़ में पिरोये उन शब्दों को गुनगुनाने लगता है !
ये दौलत भी ले लो.. ये शोहरत भी ले लो .!!
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी !
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन..
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी..!!
हालाँकि बचपन से जुडी कई यादें हैं.. पर मैं चूँकि खाने का शौक़ीन हूँ तो मैं उन दिनों के कुछ ख़ास तो नहीं पर यादगार चीज़ों का ज़िक्र ज़रूर करूँगा !
उन दिनों बाज़ार से यदि हमें कुछ लाने को भेजा जाता तो हम खुश हो जाते की यदि कुछ पैसे बच जायें तो अपनी जीव्हा की लिलिप्सा शांत कर सकें !
उन दिनों जब मैं ६ या ७ साल का था तब पैसों का चलन था ! ५ पैसे और १० पैसों में अच्छी खासी चीज़ें मिल जाती थीं जिनमें हर बच्चा खुश हो सकता था ! इन में से कुछ का ज़िक्र कर रहा हूँ !
सबसे पहले तो वो सफ़ेद प्लास्टिक में लिपटी छोटी छोटी औरेंज की टॉफी.. १० पैसे में चार .. कोई बुरा सौदा नहीं था.. कसम से आज भी उसका स्वाद नहीं भूल पाया मैं! 
दूसरी चीज़ जो मुझे याद है वो थी एक छोटे से कागज़ के डब्बे में पैक की हुई चूरन की डिबिया !
स्वाद में खट्टा मीठा और हल्का तीखापन लिए हुए इस चूरन में जाने क्या ख़ास बात थी की एक बार जो हम इसे चख लेते फिर तो हर बार इसे ही खाने को मन मचलता !
तीसरी चीज़ जो मुझे बेहद पसंद थी वो थी दोनों तरफ से बंद एक लम्बी सी स्ट्रा में भरे हुए छोटे छोटे सौंफ जैसे टुकड़े.. कीमत बस ५  पैसे ! स्ट्रा का एक सिरा काट लो और फिर लो मज़े..!!
 एक और चीज़ मुझे अच्छी लगती थी वो थी पुराने १० पैसे के सिक्के के बराबर एक सफ़ेद टॉफी जो खाने में किसी मिन्ट वाली ठंडी टॉफी की तरह लगती थी जिसके बीच में दो छेद होते थे जैसे बटन में होते हैं ! एक टॉफी खरीद ली.. एक धागा लिया, दोनों छेद से गुज़ार कर बाँध दिया और फिर धागों को आगे पीछे किया तो टॉफी किसी तेज़ घिरनी की तरह घूमती और हम खुश हो जाते. जब इस खेल से मन भर गया तो टॉफी मुंह में डाल ली.. फिर आ गया मज़ा ! १० पैसे में दो दो बार मज़े दिलाने वाली ये टॉफी अब कहीं नहीं मिलती !
इन सबके अलावा लकड़ी के चम्मच में चिपकी और प्लास्टिक की रंगीन रैपर में लिपटी चटनी.. या फिर टेबलेट  की तरह की आमचूर की गोली [आम पाचक ].. या फिर चटपटी गोली जिसके बीच में मूंगफली का दाना होता था.. या फिर रंग बिरंगी लेमनजूसी टॉफी [हम इसे लेम्चूस कहते थे ] ..या फिर काले रंग की तीखी और चटपटी लौजेंस ..!
हाय !! जब जब इन चीज़ों का ख्याल आता है.. बड़ा अफ़सोस होता है..की आखिर मैं बड़ा हुआ ही क्यूँ ?? काश ये चीज़ें फिर मिल पातीं .. काश उनका स्वाद फिर चखने को मिल पाता !!
कहाँ गयीं ये देसीपन लिए हुए मज़े दिलाने वाली चीज़ें ?? आज ये सब जैसे गुम से गए हैं ! आज सबकुछ बदल गया है !
क्यूंकि अब तो Chocolate और Caramel आज के बचपन को सराबोर कर चुका है ! विदेशी आइसक्रीम की ठंडक ने देसी गर्माहट भुला दी है !
चाहे कैडबरी, किट-कैट, डेयरी मिल्क हो या बोर्नविल ! अब तो बच्चे इनकी ही जिद करते हैं  क्यूंकि ये globalisation का ज़माना है! पर ये चीज़ें उन देसी चीज़ों की जगह कभी नहीं ले सकती जिनके स्वाद में कुछ अपनापन था, कुछ ऐसा जो भुलाई नहीं जा सकती! कम से कम मैं तो कभी नहीं भूल सकता ! क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं..?? 
अपनी सोच से मुझे वाकिफ ज़रूर कराएं !! :)

Thursday, July 8, 2010



उड़ान  

मेरा ये पोस्ट मेरे उन दिनों को समर्पित है जब मैं पहली बार धरती छोड़कर किसी वाहन की सवारी करने का लुत्फ़ उठाया ! हालाँकि उन दिनों मेरी औकात चमचमाती मोटरसाईकल पर उड़ान भरने की नहीं थी पर इतनी औकात तो थी की कम से कम मैं साइकिल की सवारी कर सकूं ! मुझे वो दिन याद हैं जब मेरी उम्र के लड़के साइकिल दौडाते हुए एक दुसरे से रेस लगाते थे ! वहीं मेरी उम्र से छोटे बच्चे भी मेरी बगल से कैंची स्टाइल में साइकिल चलाते हुए मुझे यूँ अजीब नज़रों से देखके जाते जैसे मुझे कुछ आता ही नहीं ! मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती थी! मैंने मन ही मन ठान ली थी की अब तो मैं साइकिल चला कर ही रहूँगा! मेरे घर में एक ही साइकिल थी ATLAS की १६" वाली.. जिस से मेरी दीदी स्कूल जाया करती थी और दूसरी साइकिल मेरे पापा चलाते थे जो की मेरे उम्र के हिसाब से ज्यादा ही बड़ी थी ! अतः मेरा चुनाव निश्चित था ! एक दिन मैंने चुपचाप वो छोटी साइकिल निकाली और घर के बाहर वाले खुले मैदान तक ठेलकर ले गया ! अब सवाल ये.. की साइकिल पर बैठूं कैसे ?? बैठ भी जाऊंगा तो चलाऊंगा कैसे..?? मेरे दिमाग में ये सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे की धीरे धीरे मेरे दोस्त इकठ्ठे हो गए ! वो सभी साइकिल अच्छी चला लेते थे ! अब शुरू हो गया उनके राय देने का सिलसिला..!!
कोई कहता - "सीट पर मत बैठना..बस पैडल मारते रहना..!!"
किसी ने राय दी- " हैंडल सीधी रखना..!!"
कोई कहता-" नीचे या पीछे बिलकुल मत देखियो..!! सीधे सामने देखना वरना गिर जायेगा..!!"
सब ने एक बात और याद दिलाई.. "जहाँ लगे तू गिरंने वाला है वहां ब्रेक जरूर मार लियो..!!"
मैंने भी झल्लाकर कहा -"ठीक है..!! ठीक है..!!याद रखूंगा.. बस अब तुमलोग धक्का दो.!"
मैंने बताया मैं पहली बार चलने जा रहा हूँ ..सो पीछे से तुमलोग पकडे रहना.! सभी ने हामी भर दी!
मैं भी निश्चिंत हो गया! हम सभी साइकिल एक छोटी सी ढलान पर ले गए और सभी ने साइकिल पीछे से पकड़ ली और मुझे सीट पर बैठने को कहा ! मैंने पक्का कर लिया की सभी मेरी साइकिल के कैरिअर को पीछे से पकडे हैं तो मैं भी सीट पर बैठ गया और उन लोगों ने धीरे धीरे धक्का देना शुरू कर दिया. साइकिल आगे बढ़ने लगी और साथ ही मेरी धड़कन भी.!! सभी पीछे से कह रहे थे -"हम पीछे से पकडे हुए हैं..!!"
मेरे दिमाग में वो सारी बातें घूम रही थी- पैडल मारते रहना..!! नीचे मत देखना..!! हैंडल सीधी रखना..!!
साइकिल और तेज़ होती गयी और मेरा जोश भी..!
मैंने पूछा-"अरे!! तुमलोग पीछे हो न..?? "
जवाब आया-"हाँ ! हम पीछे ही हैं..!! डरना मत..!!
मन को दिलासा देती ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और मैं थोडा निश्चिंत होते हुए बाकी के सबक मन मैं याद करने लगा..
१. हैंडल सीधी रखना..!!- मैंने हैंडल को जकड लिया ताकि वो इधर उधर न मुड़े..!
२. पैडल मारते रहना..!!- मैंने पैडल मारनी शुरू कर दी! साइकिल थोड़ी और तेज़ हो गयी ! और मेरा जोश उफान मारने लगा!
मैंने सोचा पीछे मुड़कर देखूं की किसी ने पकड़ रखा है या नहीं! तभी मेरे मन में ये तीसरी नसीहत गूँज उठी !
३. पीछे मत देखना..बस सामने देखते रहना..!!- मैंने तुरंत नज़रें सामने की तरफ कर ली!
मैंने सीधे देखते हुए आवाज़ लगाई-"अरे ! पकडे हो न..??"
पीछे से कोई उत्तर न पाकर मेरा मन निशब्द हो गया ! तेज़ भागती साइकिल और चेहरे को छूती हवाओं ने मेरे मन को उन्मुक्तता का एहसास करा दिया ! यूँ लगा जैसे मैं एक आज़ाद पंछी की तरह सागर के ऊपर हवाओं में स्वच्छंद रूप से उड़ा जा रहा हूँ ! चेहरे पर हवाओं के थपेड़ों को महसूस करते हुए मेरी आँखें स्वतः ही मूंद गयीं ! इस अदभुत एहसास से मेरा मन प्रफ्फुलित हो उठा !
अचानक मेरी तन्द्रा टूटी ! और मेरे कानों में ये शब्द पड़े.. ब्रेक..!! ब्रेक..!! अबे ब्रेक मार..!! आगे गढ्ढा है..!! मैं सकपका गया और ये जानने के लिए की आवाज़ कहाँ से आयी मैं तीसरा सबक भूल कर पीछे देखने की गलती कर बैठा !
बस्स..!!!
फिर क्या था ..?? चौथा सबक भी याद नहीं रहा .. की मुझे ब्रेक भी मारना है.. और फिर ..??
मैं गढ्ढे में..!! और साइकिल मेरे ऊपर!
कुछ समय पहले मैं  जिस साइकिल की सवारी कर रहा था वो अब मुझ पर सवार थी..!!
आखिरकार सारे सबक धरे के धरे रह गए ! पर उस दिन के बाद फिर मैं जो साइकिल पर सवार हुआ, फिर शायद ही कभी गिरा होऊंगा.,!!
मेरे लिए तो ये मेरे जीवन की पहली उड़ान थी ! थोड़ी कष्टदायक ..पर बहुत कुछ सिखा गयी ! 






[पसंद आयी हो तो आप भी रायशुमारी कर सकते हैं..और यकीन मानिये ये बिलकुल फ्री है..!!  :)]