अर्श - दिल से

Sunday, August 29, 2010

फ़िल्मी डब्बा

बचपन की कई यादों में से एक याद आज भी मन को छू जाती है ! मेरी पहली बार फिल्म देखने का अनुभव ! हालाँकि उस वक़्त टेलिविज़न और फिल्में आ चुकी थीं पर चूँकि हम बच्चे थे तो हमें फिल्म देखने की मनाही थी और हमारे घर में टेलिविज़न था नहीं! लेकिन हर रविवार हम पड़ोस में जाकर ''रामायण'' जरूर देख सकते थे पर फिल्में..बिलकुल नहीं ! हमारे घर में मानना था की फिल्मों की मार धाड़ से बच्चों पर बुरा असर पड़ता है! सो हमें मन मसोसकर रह जाना पड़ता था! 
जब भी हम किसी चौक या बाज़ार से होकर गुज़रते तो दीवारों पर चिपके पोस्टरों को बरबस ही निहारते रहते ! फिल्म भले ही कभी ना देखी हो पर पोस्टर देख-देख कर हर हीरो का नाम हमें जबानी याद था ! 
'कूली' का अमिताभ हो या धर्मेन्द्र की 'शोले' या फिर सुनील शेट्टी की 'बलवान', अक्षय कुमार की 'खिलाडी' और भी जाने कौन कौन से पोस्टरों पर अपना मन मचल जाता और इच्छा होती की देख कर आयें तो सही की आखिर फिल्म होती कैसी है !
घर से भेजे जाते किसी काम के लिए और हम पोस्टरों से नैन  मटक्का करते रहते बाद में याद आता अरे हमें तो किसी काम के लिए भेजा गया है..!! सच कहूं तो फिल्मों के पोस्टर देख कर कई बार मन में ख्याल तो ये आता की भाजी के पैसे से फिल्म देख आऊं ! पर माँ की मार के डर से कभी हिम्मत ही नहीं जुटा पाता ! सोचता फिर कभी देख लेंगे..!!

मेरा एक खास दोस्त था, जो मेरे फिल्मों के पोस्टरों के प्रति इस प्रेम से वाकिफ था! एक दिन दोपहर में वो मेरे पास दौड़ा-दौड़ा आया और मुझसे बोला- "चल फिल्म देखने चलें..!! "
मैं खुश होकर चलने को तैयार हो गया ! तभी अचानक मुझे याद आया- अरे मैं फिल्म देखने कैसे जा सकता हूँ ..?? मम्मी को पता चला तो मेरा क्या होगा..?? 
मैं बोला- "पागल है क्या ..?? अभी कहाँ जायेंगे फिल्म देखने ..?? मम्मी को पता चला तो मेरा भुर्ता बना देगी..!!"
वो बोला- "अरे कुछ नहीं होगा.. तू चल मेरे साथ..!"
मैंने कहा- "पैसे ..?? कहाँ से आयेंगे..??"
वो बोला- "एक रुपैया है..?? "
मैं बोला- "एक रुपैया ..!! अरे बावले एक रुपैये में कौन फिल्म देखने देगा तुझे..?? पूरे पांच रुपये लगेंगे !! मेरे पास नहीं हैं पैसे..!"
[हालाँकि मैंने कभी सिनेमा देखा नहीं था फिर भी मैंने हर सिनेमा हॉल की रेट पता कर रखी थी
* परदे के  बिलकुल सामने वाली लकड़ी के बेंच वाली सीट- 5 रुपये
* नारियल के रेशे से भरी गद्दी वाली सीट (N.C)- 10 रुपये 
* ऊंचाई पसंद लोगों के लिए आराम देने वाली कुर्सी लगी सीट (D.C)- 15 रुपये ]

वो फिर बोला-" अरे तेरे पास एक रुपये हैं ना..??"
मैंने कहा- "हाँ"
वो बोला- "तो फिर चल!"
मैंने कहा- "अरे ऐसे कैसे चलें..?? ढंग के कपडे तो पहन लेने दे..!"
वो मुझे खींचता हुआ बोला - "उसकी जरूरत नहीं है हम किसी हॉल में नहीं जा रहे हैं..!"
मैं अवाक रह गया, मैंने सोचा ये कौन सी फिल्म देखने जा रहे हैं जो सिनेमा हाल में नहीं लगी!
मैंने उसे रोक कर पूछा- "हम कहाँ जा रहे हैं ..??"
वो बोला- "फिल्म देखने "
मैंने पूछा - "कहाँ..??"
वो बोला- "अगले चौक पे..! अब तू सवाल मत पूछ और जल्दी चल मेरे साथ..!!"
मैं उसके जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ फिर भी मन में पहली बार फिल्म देखने की ललक थी और वो भी एक रुपये में !!.. इसी उत्सुकता से मैं तेज़ कदमों से उसके साथ साथ चल पड़ा ! मन में कई तरह के सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे !! पता नहीं कौन सी फिल्म देखने जा रहे हैं मनोज टॉकीज़ में तो सुनील शेट्टी की 'टक्कर' चल रही है और और शिवम्  टॉकीज़ में 'धरम वीर'..!! मैं मन ही मन सोच रहा था की धरम वीर देख लेते हैं उसमें तो दो-दो हीरो हैं धर्मेन्द्र और जीतेंद्र ! दो-दो हीरो वाली फिल्म वो भी एक रुपये में !! मज़ा आ जायेगा !!

तभी किसी ने मेरा हाथ झटका- "निकाल पैसे..!!"
मैंने देखा मेरा दोस्त मुझसे पैसे मांग रहा था ! मैंने अपनी छोटी हाफ पैंट की जेब से दो अठन्नी निकाली और उसे थमा दी !
मैंने पूछा कहाँ देखेंगे फिल्म..??
ऊसने कहा- "वो रहा सिनेमा हॉल !!सामने देख !!"
मैंने देखा आगे कुछ लोगों का मजमा लगा है जिसके बीच में एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा है जिसके सामने एक गोल डब्बेनुमा बक्सा है जिसमें सामने की ओर गोल-गोल छोटी छोटी खिड़कियाँ बनी हैं !! और तीन चार बच्चे उन खिडकियों में से झाँक कर कुछ देख रहे थे.. और वो आदमी उस डब्बे के ऊपर बने एक लीवर को घुमा घुमा कर चिल्ला रहा था-
आइये..!! आइये..!!
बच्चे-बूढ़े और जवान ! सुनिए-सुनिए खोल के कान !
सुनिए-सुनिए अम्मी अब्बा ! साथ मैं लाया फ़िल्मी डब्बा !
एक रुपये में हँसना हँसाना ! एक रुपये में फ़िल्मी गाना !
एक रुपये में मार पिटाई !एक रुपये में फिल्मदिखायी..!!

मैंने सोचा ऐसा कैसे ..?? फिल्म तो हॉल में दिखाते हैं..??
मेरा दोस्त मुझे खींच कर सामने ले गया उसने उस आदमी को पैसे दिए और वो उनमें से एक खिड़की में झाँकने लगा उस आदमी ने मुझे भी इशारा किया, मैं भी झाँकने लगा! अन्दर अँधेरा था थोड़ी देर में उसने पीछे वाला कपडा हटाया तो अन्दर कुछ रौशनी हुई एक सफ़ेद पर्दा था. फिर धीरे धीरे गाना बजने लगा-
नैन लड़ जईहें तो मनवा मां कसक होइबे करी..
छूठिहें प्रेम का पटाखा तो धमक होइबे करी..!!
नैन लड़ जईहें तो मनवा मां कसक होइबे करी..
गाने के साथ साथ सफ़ेद परदे पर दिलीप कुमार की तसवीरें भी आ रहीं थीं! यूँ तो ये गाना मैं रेडियो पर ही सुना करता था आज पहली बार इस गाने की तस्वीर देखी थी ! मैं एकटक बिना पलकें झपकाए अन्दर झांकता रहा और बाहर मेरे पैर भी झूम रहे थे !थोड़ी देर गाना बजने के बाद धुन बदल गयी और साथ ही परदे पर की तसवीरें भी अब कोई डायलॉग आने लगा जिसमे विनोद खन्ना और डिम्पल कपाडिया की तस्वीर आयी और कुछ देर बाद तेज़ धुन के साथ हीरो बने धर्मेन्द्र और विलेन बने रणजीत की मार पिटाई भी शुरू हो गयी! एक तस्वीर में अमिताभ घूँसा मार रहा होता तो अगली तस्वीर में विलेन बना शक्ति कपूर, गोविंदा को पटखनी देता ! मैं भी एकटक अन्दर झांकता रहा फिर अगली तस्वीर में अमरीश पुरी नीचे घायल पड़ा होता है और जीतेंद्र उसके आगे खड़ा होता है और फिर धीमे गाने की आवाज़ पर अगली तस्वीर में हीरो हेरोइन के साथ अक्षय कुमार और शिल्पा शेट्टी जाते हुए दीखते हैं !!
फिर गाना बंद और फिर से अँधेरा..!!
और फिल्म ख़त्म..!!
मैंने आँखें मीचते हुए खिड़की से नज़रें हटाकर बाहर देखा तो भीड़ लगाये बच्चे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे ! और वो आदमी वापस उस डब्बे के ऊपर बने एक लीवर को उल्टा घुमाने लगा ! 
मैं तो खुश हो गया !! अरे एक साथ इतने सारे हीरो हेरोइन वाली फिल्म देख ली वो भी एक रुपये में ! वाह साहब मज़ा आ गया !!पर थोडा दुखी भी की इतनी जल्दी ख़त्म हो गया !
बाद में मैंने उस दोस्त से पूछा ये फिल्म कौन सी थी..??
उसने कहा- पता नहीं ..!! पर मज़ा आया ना..??
मैंने कहा - हाँ ! पर बहुत जल्दी ख़त्म हो गयी !!
आते हुए मेरे मन में यही चल रहा था की आखिर लोग 5 रुपये देकर फिल्म देखने क्यूँ जाते हैं ??
[जिसका जवाब मुझे बाद में मिला !! :) ]
ये मेरी पहली फिल्म थी जो मैंने देखी वो भी एक रुपये में हालाँकि कुछ समझ नहीं आया पर बहुत ही मजेदार और रोचक लगी!

ये तो था मेरी पहली फिल्म का अनुभव !! क्या आपके पास भी अपने पहली बार फिल्म देखने की यादें है ? मुझसे ज़रूर बाँटिये !! :)