उड़ान
मेरा ये पोस्ट मेरे उन दिनों को समर्पित है जब मैं पहली बार धरती छोड़कर किसी वाहन की सवारी करने का लुत्फ़ उठाया ! हालाँकि उन दिनों मेरी औकात चमचमाती मोटरसाईकल पर उड़ान भरने की नहीं थी पर इतनी औकात तो थी की कम से कम मैं साइकिल की सवारी कर सकूं ! मुझे वो दिन याद हैं जब मेरी उम्र के लड़के साइकिल दौडाते हुए एक दुसरे से रेस लगाते थे ! वहीं मेरी उम्र से छोटे बच्चे भी मेरी बगल से कैंची स्टाइल में साइकिल चलाते हुए मुझे यूँ अजीब नज़रों से देखके जाते जैसे मुझे कुछ आता ही नहीं ! मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती थी! मैंने मन ही मन ठान ली थी की अब तो मैं साइकिल चला कर ही रहूँगा! मेरे घर में एक ही साइकिल थी ATLAS की १६" वाली.. जिस से मेरी दीदी स्कूल जाया करती थी और दूसरी साइकिल मेरे पापा चलाते थे जो की मेरे उम्र के हिसाब से ज्यादा ही बड़ी थी ! अतः मेरा चुनाव निश्चित था ! एक दिन मैंने चुपचाप वो छोटी साइकिल निकाली और घर के बाहर वाले खुले मैदान तक ठेलकर ले गया ! अब सवाल ये.. की साइकिल पर बैठूं कैसे ?? बैठ भी जाऊंगा तो चलाऊंगा कैसे..?? मेरे दिमाग में ये सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे की धीरे धीरे मेरे दोस्त इकठ्ठे हो गए ! वो सभी साइकिल अच्छी चला लेते थे ! अब शुरू हो गया उनके राय देने का सिलसिला..!!
कोई कहता - "सीट पर मत बैठना..बस पैडल मारते रहना..!!"
किसी ने राय दी- " हैंडल सीधी रखना..!!"
कोई कहता-" नीचे या पीछे बिलकुल मत देखियो..!! सीधे सामने देखना वरना गिर जायेगा..!!"
सब ने एक बात और याद दिलाई.. "जहाँ लगे तू गिरंने वाला है वहां ब्रेक जरूर मार लियो..!!"
मैंने भी झल्लाकर कहा -"ठीक है..!! ठीक है..!!याद रखूंगा.. बस अब तुमलोग धक्का दो.!"
मैंने बताया मैं पहली बार चलने जा रहा हूँ ..सो पीछे से तुमलोग पकडे रहना.! सभी ने हामी भर दी!
मैं भी निश्चिंत हो गया! हम सभी साइकिल एक छोटी सी ढलान पर ले गए और सभी ने साइकिल पीछे से पकड़ ली और मुझे सीट पर बैठने को कहा ! मैंने पक्का कर लिया की सभी मेरी साइकिल के कैरिअर को पीछे से पकडे हैं तो मैं भी सीट पर बैठ गया और उन लोगों ने धीरे धीरे धक्का देना शुरू कर दिया. साइकिल आगे बढ़ने लगी और साथ ही मेरी धड़कन भी.!! सभी पीछे से कह रहे थे -"हम पीछे से पकडे हुए हैं..!!"
मेरे दिमाग में वो सारी बातें घूम रही थी- पैडल मारते रहना..!! नीचे मत देखना..!! हैंडल सीधी रखना..!!
साइकिल और तेज़ होती गयी और मेरा जोश भी..!
मैंने पूछा-"अरे!! तुमलोग पीछे हो न..?? "
जवाब आया-"हाँ ! हम पीछे ही हैं..!! डरना मत..!!
मन को दिलासा देती ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और मैं थोडा निश्चिंत होते हुए बाकी के सबक मन मैं याद करने लगा..
१. हैंडल सीधी रखना..!!- मैंने हैंडल को जकड लिया ताकि वो इधर उधर न मुड़े..!
२. पैडल मारते रहना..!!- मैंने पैडल मारनी शुरू कर दी! साइकिल थोड़ी और तेज़ हो गयी ! और मेरा जोश उफान मारने लगा!
मैंने सोचा पीछे मुड़कर देखूं की किसी ने पकड़ रखा है या नहीं! तभी मेरे मन में ये तीसरी नसीहत गूँज उठी !
३. पीछे मत देखना..बस सामने देखते रहना..!!- मैंने तुरंत नज़रें सामने की तरफ कर ली!
मैंने सीधे देखते हुए आवाज़ लगाई-"अरे ! पकडे हो न..??"
पीछे से कोई उत्तर न पाकर मेरा मन निशब्द हो गया ! तेज़ भागती साइकिल और चेहरे को छूती हवाओं ने मेरे मन को उन्मुक्तता का एहसास करा दिया ! यूँ लगा जैसे मैं एक आज़ाद पंछी की तरह सागर के ऊपर हवाओं में स्वच्छंद रूप से उड़ा जा रहा हूँ ! चेहरे पर हवाओं के थपेड़ों को महसूस करते हुए मेरी आँखें स्वतः ही मूंद गयीं ! इस अदभुत एहसास से मेरा मन प्रफ्फुलित हो उठा !
अचानक मेरी तन्द्रा टूटी ! और मेरे कानों में ये शब्द पड़े.. ब्रेक..!! ब्रेक..!! अबे ब्रेक मार..!! आगे गढ्ढा है..!! मैं सकपका गया और ये जानने के लिए की आवाज़ कहाँ से आयी मैं तीसरा सबक भूल कर पीछे देखने की गलती कर बैठा !
बस्स..!!!
फिर क्या था ..?? चौथा सबक भी याद नहीं रहा .. की मुझे ब्रेक भी मारना है.. और फिर ..??
मैं गढ्ढे में..!! और साइकिल मेरे ऊपर!
कुछ समय पहले मैं जिस साइकिल की सवारी कर रहा था वो अब मुझ पर सवार थी..!!
आखिरकार सारे सबक धरे के धरे रह गए ! पर उस दिन के बाद फिर मैं जो साइकिल पर सवार हुआ, फिर शायद ही कभी गिरा होऊंगा.,!!
मेरे लिए तो ये मेरे जीवन की पहली उड़ान थी ! थोड़ी कष्टदायक ..पर बहुत कुछ सिखा गयी !
[पसंद आयी हो तो आप भी रायशुमारी कर सकते हैं..और यकीन मानिये ये बिलकुल फ्री है..!! :)]
बहुत अच्छा लगा आपकी पहली उड़ान के बारे में जान कर, और यही सबके साथ होता है, वही पहली उड़ान ही तो हमे संभलना सिखाती है ना....
ReplyDeleteregards
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ReplyDeleteno comments.... abi pura ni padha..
ReplyDeleteतुम्हारी तरह मैं भी शिर्फ़ एक बार ही गिरा ठीक उसी तरह जैसे तुम्हारे दोस्तों ने छोड़ दिया था वैसे ही मेरे बड़े भाई ने मुझे छोड़ दिया था जब तक मुझे पता नहीं था की भैया ने मुझे छोड़ दिया है
ReplyDeleteसाइकिल ठीक चल रही थी पर जैसे ही भैया ने पीछे से आवाज लागाई "बढ़िया चला रहा है चला ता रह ...." मुझे पता चल गया की भैया पीछे रह गया और मैं साइकिल अकेले ही चला रहा हूँ और ये बात दिमाग में आते ही दिल घबरा गया सोचा इसे चलाना तो आगया पर अब इसे रोकूंगा कैसे और उस के बाद पता ही नहीं चला की मैं कब जमीन पे पड़ा अपने पैर को देख रहा हूँ जिस से खरोच लगने से खून निकल रहा था पर वाकई में वो कुछ पल जो अकेले साइकिल पे बिताये वो किसी उड़ान से कम नहीं थे और वो चोट उस अहसास के आगे कुछ भी नहीं थी .
मैंने बगैर दोस्तों के मदद के चलाना सीखा था | आपका यह संस्मरण बहुत ही रोचक रहा | धन्यवाद |
ReplyDeleteextremely expressive,bombastic use of hindi words..nice work:)
ReplyDeletep.s i cannot ride a cycle :p
बहुत खूब! बहुत ही अच्छे ढंग से वर्णन किया है। keep it up 👍
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